अब वो कहीं दिखती नहीं !
अब वो कहीं दिखती नहीं !
जो मंजिल थी
कल तक
पाने की चाहत,
अब वो रही नहीं।
मेरे जाने के बाद भी
उसकी आँखों से
एक आँसू बहा नहीं।
मेरी रातों की
चाँद थी वो,
इस काली अमावस में
अब वो कही दिखती नहीं।
जो मंजिल थी
कल तक
पाने की चाहत,
अब वो रही नहीं।
एक हौसला, उम्मीद ही
बाकी है,
जिंदगी के लिये उसकी
एक झलक काफ़ी है।
वो अक्सर अंधेरों में
उजाला बनके
दिखती थी,
मेरे सीने में धड़कन बनके
धड़कती थी।
अचानक से ना जाने क्यूँ
वो मुझसे रूठ गई,
परछाई भी नजर
आती नहीं।
वो जैसी थी, वैसी
अब वो रही नहीं !