दर्द हमारा कोई ना जाने
दर्द हमारा कोई ना जाने
अब दर्द हमसे
सहा नहीं जाता ,
बंद कमरों में
रहा नहीं जाता !!
मिलना भी
किसी से
दुश्वार हो गया !
राबता पर भी
प्रहार हो गया !!
दो जून की रोटी
मयस्सर ना हुयी !
आज़ाद मुल्क में
फ़ज़ीहत ही मिली !!
हमें नाज़ था उन
सत्ता के नुमाईंदों पर !
जो कहते थे --
"गाली ना गोली से
अपनाएंगे बोली पर" !!
पर कैसी यह
चाल चली ?
जंजीरों में
जकड़ दिया !
हमको अपने
अधिकारों से
अपंग बनाके
छोड़ दिया !!
दहशत और
आतंकों के साये में
जीना अब
दुश्वार हुआ !
प्रजातंत्र के
मूलमंत्र फिर से
शर्मशार हुआ !!
कहाँ गया वह
मंत्र हमारा ?
"सबका साथ
सबका विकास "
अँधेरे में छोड़ के
हमको चूम रहे
धरती -आकाश !!