थक गये है होंठ मोहन
थक गये है होंठ मोहन
थक गये है होंठ मोहन अब मुरली न बजाओ,
किसी राधिका के मन को, गोपियों को न सताओ,
बहुत सुर-राग निकला स्वरों में श्रृंगार भर के,
दिल से लय ताल बन के, आँखों में प्यार भर के,
बहुत अमृत लुटाया है महा रास में आ, मगर
झूठा अब उन गोपियों पर इल्ज़ाम न लगाओ
थक गये है होंठ मोहन अब मुरली न बजाओ।।
अमृत सी चाँदनी बन कर मिली सितारों को,
चाँदनी चांद की हो कर मिली इन रातों को,
अजब यह किस्सा है तुम्हारी ही कहानी का
राधिका को कहाँ मिला दर्जा पटरानी का?
कैसे विश्वास दिलाऊँ टूटा है हर इक दिल,
अब किसी के दिल में दबी पीड़ा को न जगाओ,
थक गये है होंठ मोहन अब मुरली न बजाओ।।
