कुसूर नहीं यह मोहब्बत का
कुसूर नहीं यह मोहब्बत का


खयाल खयाल बन के रह गया तू....
एक दिन था जब
एक पल ना गवारा तुझसे दूर था
तू सूरज की रोशनी सा था
तो मैं सांझ का सुकून
एक दिन था जब
एक दिन भी ना था तू मुझसे दूर
ना थी सरहदें कोई
ना कोई ख़लिश
बस तू था और संग तेरे मेरा गुरूर था
था नशे सा तू
मदहोश एक हवा सा
मगर क्या मालूम था मुझे
तू सिर्फ मेरा नहीं
था नशा हजारों का
मैं लड़ती रही अपने गुरुर से
मैं लड़ती रही हर एक शख्स से
मगर क्या मालूम था मुझे
तेरी उस वफा का
जो सिर्फ मेरा नहीं
था वफादार हज़ारों का
थी कायल मैं तेरी हर एक अदा पर
ना डर था अपनी बर्बादी का
था भरोसा तेरे
हर एक उस वादे पर....
मगर क्या मालूम था मुझे
तेरा इश्क नहीं वो
था मेरा जुनून
तू साथ था
मगर क्या मालूम था मुझे
तू मेरा सच नहीं
था झूठ हजारों का
कुसूर नहीं यह मोहब्बत का
दोष है यह तेरी बेवफाई का
एक मासूम से दिल को
मॉम स पिघला गया तू
एक सच्चे से उस रिश्ते को
यूं झूठला गया तू
मगर क्या मालूम था मुझे
मेरी उस ताकत का
नागवार जिनको रुसवाई का
ये मंजर था
जिंदगी मेरी थी
तो हक क्यों तेरा था
मोहताज नहीं मैं किसी की
यह अंदाज भी मेरा अपना था