STORYMIRROR

Arpita Sahoo

Abstract

2  

Arpita Sahoo

Abstract

वक्त का आईना

वक्त का आईना

1 min
372

आज फिर जिंदगी का वह मोड़ सामने आ खड़ा है

जहां आशा नहीं सिर्फ निराशा का मंज़र नजर आ रहा है


आज फिर इंसान इंसानियत को तड़प रहा है

आज फिर इस दिल में जीने की तमन्ना जग रही है


क्या है मेरा वजूद ?

क्या है मेरी पहचान ?


ये वो सवाल हैं...

जिनका जवाब सिर्फ़ वक्त का तजुर्बा है


मगर वक्त किसी का इंतजार नहीं करता

और इंसान वक्त की कद्र नहीं करता



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract