वक्त का आईना
वक्त का आईना
आज फिर जिंदगी का वह मोड़ सामने आ खड़ा है
जहां आशा नहीं सिर्फ निराशा का मंज़र नजर आ रहा है
आज फिर इंसान इंसानियत को तड़प रहा है
आज फिर इस दिल में जीने की तमन्ना जग रही है
क्या है मेरा वजूद ?
क्या है मेरी पहचान ?
ये वो सवाल हैं...
जिनका जवाब सिर्फ़ वक्त का तजुर्बा है
मगर वक्त किसी का इंतजार नहीं करता
और इंसान वक्त की कद्र नहीं करता