वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे


वो भी क्या दिन थे
कुछ अजनबी से
कुछ आनजाने से
ना शिकवा थी
ना शिकायत किसी से
था हसीन हर वो लम्हा
जहां साथ महबूब था
और था साथ महबूब का
मगर.....
खुशनसीबी भी नसीब हुई
कुछ इस कदर....
ना महबूब का साथ रहा
ना साथ महबूब रहा