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Arpita Sahoo

Abstract Inspirational

4.0  

Arpita Sahoo

Abstract Inspirational

एक नया आगाज़

एक नया आगाज़

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हूं आज़ाद वो पंछी मैं

है उड़ान का जज्बा जिसमें

है आगे बढ़ने की चाह जिसमें

हूं आज़ाद वो पंछी मैं।


ना रोक मुझे

ना टोक मुझे

हैं बुलंद इरादे मेरे।


हूं बेपरवाह मगर

लापरवाह नहीं

हूं निराश मगर

हताश नहीं

हूं नाज़ुक मगर

कमज़ोर नहीं।


गिरकर उठना

उठकर संभलना

आज़ाद आज़ादी की

लड़ाई का

है हक मेरा !


है हक मेरा,

मेरे हक का

है हक मेरा,

मेरे वजूद का,

मेरी पहचान का।


मगर क्यों ?

आखिर क्यों ?

क्यों हर वक्त मुझे

तोला गया

लड़की हूं मैं लड़का नहीं

क्यों हर बार

अफ़सोस जताया गया।


क्यों हर बार

सवालों ने मुझे घेरा

क्यों हर बार हकीकत ने

मेरा दम घोटा।


विचारों की स्वतंत्रता हो

या अस्तित्व की लड़ाई

क्यों हर बार

मैंने ही मात खाई।


जब चलने की दो कदम की

हिम्मत मैंने बांध बेड़ियां

किया पिंजरे में यूं कैद


कब तक ?

आखिर कब तक

रोक पाओगे मुझे !


स्मरण रख

लंका की अग्नि में

जल रही सीता हूं मैं

रावण के अंत का

वर्तमान हूं मैं।


महाभारत के विनाश का

कारण हूं मैं

आरंभ नहीं !

प्रारंभ हूं मैं !


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