लाली
लाली
मेरी मोटर की आवाज़ सुनकर,
उसका दरवाज़े पर आना,
मुझे दूर से महसूस कर,
उसका मेरी राह तकना
मैं अब न देख पाऊँगा।
मेरे घर में घुसने से पहले,
उसकी कातर आँखों को,
उसकी आँखों में छिपी,
छोटी सी आशा
मैं अब न देख पाऊँगा।
मेरे किसी दूसरे जीव को,
दुलारने पर उसकी नाराज़गी,
उसके उस जीव के प्रति,
गुस्से को
मैं अब न देख पाऊँगा।
मेरे परचून की दुकान
जाने का समय,
ध्यान में रखकर,
मुझसे पहले ही उसके वहाँ,
पहुँच जाने को,
मैं अब न देख पाऊँगा।
उसे जिसकी आदत
हम सभी को हो गयी थी,
उसे आज नगर निगम की गाड़ी,
उठा ले गयी।
उसके हठ को,
उसके अबोले प्यार को,
उसके लाड़ को,
हमारे इंतज़ार को,
मैं अब न देख पाऊँगा।
लाली, चली गयी है,
दुकान जाना,
अब बेमतलब है,
पार्ले जी, अब अच्छा
नहीं लगता, इंतज़ार,
तुम्हें फिर कब देख पाऊँगा।