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Priyesh Pal

Romance

4.0  

Priyesh Pal

Romance

मैं देखता हूँ

मैं देखता हूँ

1 min
401


मैं देखता हूँ


कुछ जोड़े

जो हाथों में हाथ डाले,

नापते हैं सफ़र

प्रेम को पिरोये ।


कुछ हमसाये,

जो एकतरफ़ा 

खींच रहे हैं सफ़र

उम्मीद प्रेम की पिरोये।


एक दम्पति,

जो एक दूसरे संग

अबोले में काट रहे हैं सफ़र,

उम्मीद वफ़ा की पिरोये।


और दूसरी,

जो भवसागर कर रहे हैं पार,

एक-दूजे के खुले नयनों में

अगले जन्म 

पुनः मिलन की आस पिरोये।


कई सफ़र,

कई अनुभव,

कुछ त्रस्त,

कुछ आशावान,

कुछ शांत

और एक

बस एक शाश्वत "प्रेम"


मैं देख पाता हूँ

किसी अनंत सुरंग में

जहाँ कहीं दूर से प्रकाश का एक बिम्ब 

नज़र आता है

वहाँ से,


क्या इन सभी यायावरों ने

सफ़र पर निकलने से पूर्व

मिलाये होंगे 

गुण?

नक्षत्र?

योग?

गणित?

जाति, मज़हब या समाज?

गर हाँ?

तो क्यों हर युगल अलग समस्याओं से ग्रसित?

गर न?

तो क्यों ???


क्योंकि मिलान सिर्फ़ तीन अनिवार्य,

प्रेम, धैर्य और विश्वास ।



मैं देखता हूँ।






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