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Priyesh Pal

Inspirational

4  

Priyesh Pal

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सोचा है कभी?

सोचा है कभी?

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महक फूलों की जब

तुम्हें न मिले


महबूबा को आग़ोश में

लेने के बावजूद

उसके तन की ख़ुशबू

आत्मसात न हो


गली से जो निकले बाहर

तो बाजी के हाथों की बिरयानी

हाय! मसालों की गंध न मिले।


न घूरे पर कचरे की दुर्गंध

न इत्र, न फूल, न बदन 

सब एक समान...


कभी सोचा है कैसा लगता होगा?


अगर आप सोच पा रहे हैं न

तो ध्यान रखिएगा

ऐसी ही हो जाएगी दुनिया

जब इसमें रहने वाले सभी पंथ

धर्म, मज़हब, जातियां एक हो जाएंगी।

इनकी महक ख़त्म हो जाएगी

महक को खत्म न होने दो

उसे जियो 

उसके ही रूप को आनंद से

अपनाओ।

जीवन यही है अनेक रंग

गंध

पंथ

मज़हब

लोग

देश...


समय है अभी चुका नहीं

सोच लो...



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