पिंजरे में भविष्य
पिंजरे में भविष्य
एक आज़ाद परिंदा है
वह
जो पैदा न हुआ प्रतिभा वरदान के साथ।
उसने अपनी मेहनत से सींच
अपनी कला को संवारा,
उसकी रूह में है बंजारापन
वो फिरता रहना चाहता है आवारा
मदमस्त,
कल के भविष्य का हाथ थाम
उनके साथ जीना।
वो ताउम्र निभाते रहना चाहता है
किरदार अनेक उनके लिए
उसके लिए महीने की बंधी तनख्वाह
इक पिंजरा है सोने का
और मजबूरी है पेट ।
क्योंकि यहाँ कलाकार होने का मतलब,
बेरोज़गार,
फालतू,
निश्फिकर,
आत्मकेंद्रित,
स्वार्थी,
होना जाना है।
क्यों???
ये आप स्थापित हो चुके
वरिष्ठों से पूछ सकते हैं,
जिन्होंने कला को "शौकिया" बना दिया ।
उन पूर्वजों से पूछ सकते हैं,
जिन्होंने अपने अग्रजों को
प्रोत्साहन न दिया।
उस तंत्र से पूछ सकते हैं,
जिसने इसे भ्रष्ट किया ।
और भी लोग हैं जिनसे बहस की जा सकती है,
और वे करते रहेंगे ताउम्र
क्योंकि उनकी थाली में है मलाई।
और वो?
वह अभी अपने पिंजरे में
अपना भविष्य बुन रहा है...
