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Priyesh Pal

Abstract Others

4.0  

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मृत्यु! इक सत्य शास्वत

मृत्यु! इक सत्य शास्वत

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मृत्यु 

है इक सत्य शाश्वत।


कब?

कहाँ?

कैसे?

समय पर?

या असमय?


कैसे मिलेगी? 

कोई नहीं जानता।


मैं,

मरने से पहले,

गाना चाहता हूँ,

जीवन गीत।


मैं एक वाद्य के,

तारों को छेड़ना चाहता हूँ

और उनसे निकलती हुई

सुमधुर ध्वनि को 

महसूस करना चाहता हूँ।


मैं अपने अस्तित्व को,

तोड़ देना चाहता हूँ

और टूटे अस्तित्व के

बचे हुए चूरे से

मैं लेना चाहता हूँ एक नया जन्म

माया पंछी की तरह।


मैं अपने मन को,

भटका देना चाहता हूँ

गोरी के आँचल में

और महसूस करना चाहता हूँ

समुद्र की गहराई लिए 

उस वात्सल्य को

जो प्रेमिका के रूप में उसने बचा रखा है

सिर्फ मेरे लिए।


मैं रंगों में

सराबोर हो जाना चाहता हूँ

रंग!

मैत्री का

प्रेम का

वात्सल्य का

श्रृंगार का

सुख का

दुःख का

और अंत में

मोक्ष रंग।


मैं जीव को छोड़

ब्रम्ह नाद में समाहित हो जाने से पहले

एक बार जीव में ही विलीन हो जाना चाहता हूँ।


मृत्यु,

इक सत्य है शाश्वत।।



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