हमारा अजन्मा शिशु
हमारा अजन्मा शिशु
हमारा वो बच्चा,
जो जन्म लेने से पहले ही हमें छोड़ गया
वो न सिर्फ़ हमें छोड़ गया,
बल्कि उन सपनों को भी,
जो हमने उसके साथ जी लिए थे।
उसे शायद भरोसा नहीं था हम पर,
कि हम उससे किए वादे निभा सकेंगे,
इसलिए जिस दिन उसने अपनी धड़कन से मिलवाया,
उसके अगले ही कुछ दिनों में उपवास पर जा समाधि ले ली...
कहते हैं एक मां ने बहुत कुछ खोया,
अपना अंश,
अपना खून,
अपनी भावनाएं,
सब कुछ..
आदत हो गई थी उससे बतियाने की,
लेकिन क्या सिर्फ़ मां ने खोया?
मां रो लेती है,
पिता रो नहीं पाता
वह जता नहीं पाया
कि उसने भी मां के पेट
से जिसे खोया वह उसका भी अंश था,
वह भी एक खो चुके शिशु को
रोज़ सोने से पहले कहानी सुनाता था
कि वह जैसा सुनेगा वैसे उसके विचार होंगे
किंतु क्या जानता था वह,
कि वह तो है ही नहीं अब सुनने को ...
पिता कह भी नहीं पाता कि
मेरा वादा था उससे,
कि सीखूंगा पतंग उड़ाना,
एक वाद्य बजाना,
कंचे खेलना...
और न जाने क्या क्या,
जिनमें से एक भी पूरा न था,
शायद इसलिए चला गया वह।
वह पूछता स्वयं से,
क्या समय दिया है उसने?
और जवाब भी देता स्वयं
हां शायद...