अभिनेता
अभिनेता
वह उस समय हँसता है,
जब भीतर वह आँसुओं
का सैलाब लिए है
और हँसाता भी है।
वह तब रोता है
जब भीतर वह खुशियों
के समंदर
में गोते लगा रहा हो
और रुलाता भी है।
मंच पर
कोई नायक है वह
जिसने जीता है नायिका का प्रेम
और वह नितांत अकेला है
मंच परे।
जो हारा है...
रोटी से,
कपड़े से,
भावनाओं से,
रिश्तों से...
चापलूसों से,
कलाधर्मियों से...
हार रहा है नियमित
किंतु बढ़ भी रहा है
उसी पथ पर
जहाँ वह शांत होगा एक योद्धा की तर्ज पर
जैसे हुए थे अशोक...
जहाँ वह वीरता से लड़ेगा
जैसे लड़े थे रश्मिरथी...
करेगा प्रेम कालिदास की तरह
और प्रेम में ही नितांत अकेला जाएगा
स्वर्ग गणपत राव की तरह...
क्योंकि उसने नफ़रत करना सीखा ही नहीं
के रंगमंच की देन है उसे...
कि वह भटक जाना चाहता है
जैसे भटका हुआ सा है वह
इस कविता के
आरंभ से
अंत तक...
फिर भी...