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Rewa Tibrewal

Romance Tragedy

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Rewa Tibrewal

Romance Tragedy

जरूरत

जरूरत

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मुझे जब तुम्हारी जरूरत थी

जब मैं टूटने लगी थी

जगह जगह दरारें पड़ने लगी थी

तुम देख कर समझ न पाए


मैंने तुम्हें आवाज़ लगाई

एक बार दो बार नहीं

कई कई बार

पर हर बार अपनी

उलझनों में उलझे तुम्हें

मैं, मेरे एहसास जरूरी न लगे


पर मैं टूटी नहीं बिखरी नहीं

ख़ुद को समेटा अपनी दरारों को

भर तो न पाई पर उन्हें इस तरह

से ढका की वो खूबसूरत दिखने लगी

और मैं उनके साथ जीने लगी


आज अचानक तुम्हें मेरा ख्याल आया

तुम आये मेरे पास

पर अब मैं तुम्हें फिर से इज़ाज़त

नहीं दे पाऊँगी की तुम

उन दरारों को फिर से बदसूरत

दर्द भरा कर दो और फिर

डूब जाओ अपनी उलझनों में


मैं खुश हूँ उनके साथ अपने साथ

मुझे वैसे ही रहने दो..



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