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Rewa Tibrewal

Abstract

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Rewa Tibrewal

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घर

घर

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उस मकान को देख रहे हैं न 

उसको घर बनाने का सच

क्या पता है आपको ??

कितनी बहस

कितने आँसू

कितने तकरार

कितने अरमान

कितने रत जगे लगे हैं


सारी जिंदगी नौकरी

करने वाले की

पसीने से जमा की हुई

पूंजी लगी है

बूढ़े बाप का सपना

बीवी का अरमान

बच्चों का ख़्वाब

बहनों का आशीर्वाद

लगा है

उस एक मकान को

घर बनाने में

सालों भगवान के आगे

प्रार्थना के दीप लगे हैं

इस एक सपने को

पूरा करने में अनगिनत

ख़्वाहिशों को यूँ ही

हँसते हुए क़ुर्बान किया है


उस घर का हर कोना

इबादत है दुआ है

भावनाओं का सागर है

इसलिए वो सिर्फ

ईट सीमेंट का घर नहीं

वो एहसासों का मन्दिर है


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