मैं अश्वमेध रथ हूँ
मैं अश्वमेध रथ हूँ
मैं श्वेत पत्र पर चलती काली स्याह हूँ
मैं जिव्हा से निकलती तेरी चीखती पुकार हूँ
मैं रगों में बहता उबलता लाल लहू हूँ
मैं भीतर बाहर करती तेरी स्वांस हूँ
मैं अश्वमेध रथ हूँ , मैं अश्वमेध रथ हूँ ।।
मैं अंधेरे को डराता जलता सूर्य हूँ
मैं काल को ललकारता महाकाल हूँ
मैं सागर को भी भयभीत करता चक्रवात हूँ
मैं लपटों को निकालता जंगल की आग हूँ
मैं अश्वमेध रथ हूँ, मैं अश्वमेध रथ हूँ ।।
मैं कण कण से बना पर्वत कैलाश हूँ
मैं आग में तपता हथौड़े से पिटता लौह का लिबास हूँ
मैं बरगद की जड़ों जितना विशाल हूँ
मैं क्रोध स्वरूप जल रूपी बाढ़ हूँ
मैं अश्वमेध रथ हूँ, मैं अश्वमेध रथ हूँ ।।
मैं अर्जुन के गांडीव से निकलता बाण हूँ
मैं शिव के जटाओं से निकलती गंगा का प्रवाह हूँ
मैं विष्णु के तर्जनी में धारण अस्त्र सुदर्शन चक्र हूँ
हां मैं अश्वमेध रथ हूँ , हां मैं अश्वमेध रथ हूँ ।।