STORYMIRROR

Amar Nigam

Abstract

4  

Amar Nigam

Abstract

मैं कहाँ रहता हूं यहाँ

मैं कहाँ रहता हूं यहाँ

1 min
628

मैं कहाँ रहता हूँ यहाँ 

यहाँ तो ख्वाब रहते है

जो दिन और रात में फिरते हैं

जो सवालों को जवाब देते है


मैं कहाँ रहता हूँ यहाँ

यहाँ तो उम्मीद रहती है

जो धूप और छांव की फिक्र छोड़

उलझनों को सुलझाने में लगी रहती है


मैं कहाँ रहता हूँ यहाँ

यहाँ तो सब्र रहता है

जो है उस भोर के इंतज़ार में

जो सच मे सुनहरी और बदली सी होगी


मैं कहाँ रहता हूं यहाँ

यहाँ तो बस स्वास रहती है

जो है अपनी ज़िंदगी के इंतज़ार में

जो ज़िंदा है अपने ख्वाब से

मैं कहाँ रहता हूं यहाँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract