लिबास
लिबास
बुन रहा लिबास तू धर्म के नाम का
कर रहा गुमान तू धर्म के नाम का
जंग कर रहा धर्म के नाम का
बांट रहा मिट्टी धर्म के नाम का।
सच का तुझको न तनिक भी ज्ञान
भटक रहा था जब तू ऐ इंसान
बना दिया था तब किसी ने
अलग अलग स्थानों पर ये
अनेक धर्म और काज
उस किसी को बना दिया तुमने भगवान
पहना कर अपनी मर्जी का लिबास
सच का ना तुझको तनिक भी ज्ञान।
बांट रहा कोई तुमको कोई
अपनी लालसा के पूरन में
न जाने कब तू जानेगा सारी
सृष्टि जन्मी ऊर्जा के एक स्त्रोत से
तभी तो लगती बलाएं
और दुआएँ सबकी
बताया जब साईं और
कबीर ने मालिक सबका एक
पहना दिया उनको भी चोला
अपने धर्म के नाम का एक।
जाग जा वक़्त रहते तू ऐ नादान
मत कर तू इतना गुमान
पहन ले चोला मानवता के नाम का
कर गुमान बस मानवता के नाम का।