विश्वास
विश्वास
करूँ मैं आस फिर विश्वास।
जरा तुम ही कह दो कैसे।।
इतने मुखौटे हैं आस-पास
गिरगिट रंग बदलते हो जैसे।
हर पल पराएपन का करें एहसास
जरा तुम ही कह दो कैसे।।
ये मधुमक्खी की है कैसी प्यास
रसपान से नहीं मिटती हो जैसे।
हमेशा डंक मारने का करें कयास
जरा तुम ही कह दो कैसे।।
बनूँ मंजरी की है मधुर सुवास
मलयज मकरंद बिखरते हो जैसे।
हरदम काँटें चुभने का करें प्रयास
जरा तुम ही कह दो कैसे।।
ऐसे इंसान नहीं हैं आते रास
रिश्ते मौसम बदलते हों जैसे।
क्यों इनके लिए मन करें उदास
जरा तुम ही कह दो कैसे।।
उन मोतियों की है मुझे तलाश
एक माला में बिंधते हों जैसे।
जो अपनी आभा से करें उजास
जरा तुम ही कह दो कैसे।