होलिकोत्सव
होलिकोत्सव
मन मतवाला झूम रहा है
फागुन के मस्त खुमार में ।
शायद ऐसा ही होता है
होली के इस त्योहार में ।।
बाग मयूर करे नर्तन है
कोयल के सुर-मल्हार में ।
अंगड़ाई लेती मन-प्रीत है
बौराई सौरभ की डार में ।।
खिले फूल क्यारी-क्यारी हैं
भँवरे नित डोले मनुहार में ।
संग पुरवाई डोल रही है
गोरी, प्रियतम के प्यार में ।।
बासंती रंग रंगी धरा है
नूतन मौसम के श्रंगार में ।
ओढे़ हरियाली चूनर है
अनंत मिलन अभिसार में ।।
नटखट नागर खेल रहे हैं
राधा संग होली रंग बहार में।
रघुवर भीग रहे अवध हैं
सिय संग पिचकारी की धार में।।
लाल गुलाल रंगे गाल हैं
सब रंगों के फाग-फुहार में ।
भंग का रंग चढ़ा सर है
घूमें सपनों के संसार में ।।
पापड़ गुझिया रसभरी है
जीवन के खट्टे मीठे सार में ।
इंद्रधनुष के रंग सभी हैं
मिलते मानव के व्यवहार में।।
मन जो उपजे बुरे भाव हैं
करें होलिका दहन प्रतिकार में।
भुला के सब जो बैर भाव हैं
भीगे रंगों के इस त्योहार में ।।