होली
होली
ईर्ष्या द्वेष विषमता के ईंधन से
करें दहन होलिका अनीति को ।
सहृदय प्रेम समता के सृजन से
बचाएँ भक्त प्रह्लाद सुनीति को।।
रंग लाल गुलाल और हरे से
बढे़ प्रीत हरियाली अंतर्मन में ।
केसरिया नीले संग पीले रंग से
खिले सुमन सुख शांति जन जन में।।
शस्य श्यामला के नव श्रृंगार से
प्रफुल्लित अतिथि ऋतु बसंत है ।
मोद मुदित विहंगम विहार से
प्रमुदित जड़ -चेतन अनंत है ।।
धन -धान्य भरे घर आँगन से
आल्हादित पकवानों की अभिलाषा है।
रीते -रिश्तों के अंतस कानन से
भी महके प्रेम सुरभि की आशा है।।
खुशियाँ झाँक रही सजे बाजारों से
आशंकित, कुटिल कोरोना के साए में।
सोशल डिस्टेंसिंग सेनेटाइजर से
बँधा जीवन आज मास्क के पाए में।।
काश मनाते होली हर्ष - उल्लास से
परस्पर भेदा - भावों को मिटा कर।
करते तन- मन सतरंगी रंगों से
अंत: के नैसर्गिक भावों को जगाकर।।
है ये मिलन का त्योहार जमाने से
मगर अब दूरी बन रही जरूरत है।
बिलग हो रहे हम एक दूजे से
दस्तक दे ! चाहे जैसी मुसीबत है ।।
