शस्य श्यामला के नव श्रृंगार से प्रफुल्लित अतिथि ऋतु बसंत है । शस्य श्यामला के नव श्रृंगार से प्रफुल्लित अतिथि ऋतु बसंत है ।
हो कोई उम्र मेरी, मैं कुचल कर नालों में फेंकी जाती हूँ, हो कोई उम्र मेरी, मैं कुचल कर नालों में फेंकी जाती हूँ,
सड़ा गला बाजारों का नहीं खाएंगे - खिलाएंगे। सड़ा गला बाजारों का नहीं खाएंगे - खिलाएंगे।
हर पल चाहा जान से अपने, बेजान मैं तुझको कहूं कैसे। हर पल देखा मुस्काती तुझको, हर पल चाहा जान से अपने, बेजान मैं तुझको कहूं कैसे। हर पल देखा मुस्काती तुझको,
मैं शब्दों की रचनाएं हूं मैं भगवा की परछाई हूं। मैं शब्दों की रचनाएं हूं मैं भगवा की परछाई हूं।