भारत मां के नाम लिखा
भारत मां के नाम लिखा
मैं छल नहीं मैं कपट नहीं
मैं झूठ नहीं मैं द्वेष नहीं
मैं ऋषि मुनियों का त्याग हूं।
मैं निंदा नहीं मैं श्राप नहीं
मैं छल के बिल्कुल पास नहीं
मैं वेदों का राग हूं।
मैं अधर्म नहीं मैं भरम नहीं
मैं भगवान नहीं मैं अवतार नहीं
मैं साधु की कंठमाला हूं
मैं सरफिरा लेखक सनातनी वाला हूं।
मैं शब्दों की रचनाएं हूं
मैं भगवा की परछाई हूं।
मेरी कलम जब लिखती है
झुकती नहीं दरबारों में
डट जाती हैं दुश्मन के आगे
ये सरफिरे की कलम है
बिकती नहीं बाजारों में।
(मैंने क्या लिखा)
मैंने कलम से
ओम लिखा वेद लिखा
फिर मैने यज्ञ लिखा
भगवा लिखा है बारंबार
फिर राष्ट्रध्वज लिखा
लिखा वही जो लिखा है
नहीं किसी से मिटा है
फिर मैंने सूखे वृक्ष का
पत्ता पत्ता लिखा
जो भी लिखा है सत्य लिखा
फिर भारत मां का नाम लिखा।
