बिन मात पिता की बेटी
बिन मात पिता की बेटी
धरा पर आ गई मैं मां के आंचल में ना सो पाई!
कभी जगाती मां मुझे पर मां को मैं ही ना जगा पाई!!
हल्की सी आंख खुली मेरी सामने सुंदर सी मूर्त थी!
झट पहचान गई उस मूर्त को
वो मेरी मां की सूरत थी!!
है भाग्य मेरा बड़ा दुर्भाग्य निकला!
मां की सूरत तो देखी
ममता ना ले पाई!!
मां ने छोड़ा पिता ने छोड़ा
छोड़ गया जग सारा था!
ममता की ममता में डूबी थी
मां के बाद बचा पिता का ही सहारा था!!
मुझे पिता की सूरत सी याद है!
धूप में ना चली जाऊं वो बात भी याद है!
भाग कर मां के गले लगा भी याद है!
भूली नहीं मैं परी मां की परी हूं
मुझे आज भी इन की बातों की यादें भी याद है!!
बचपन मेरा एक उलझन में बीत गया!
सवालों के घेरे में मुझे ही लिप गया!!
रात को एक कोने में छिप कर रो लेती हूं!
आंसू से बदन को भिगो लेती हूं!
काश मेरी मां जिंदा होती
मेरे आंसू की कीमत तब होती!
पिता का साया भी छूट गया सर से!
खिलौनों का बचपन पिता की तस्वीर देख लेती हूं!!
मां की तस्वीर को देखा मैंने
आंसू तो आए पर मुंह से कुछ ना बोला मैंने!!
पिता की याद अब तक है दिल में
कुछ भुला ना पाई हूं!
मैं वो परी हूं जो बिना मां बाप के उड़ पाई हूं!!
की मुझ को भी दर्द होता है
जब आंगन में अकेली रहती हूं!
यूं तो मुझे सब खुश लगते है
पर मैं अंदर ही अंदर दुःख सहती हूं!!
मेरे सर पर भार बड़ा हो गया
जाती बहार घूमने जमाना खड़ा हो गया!!
देखते मुझ को गलत नजर से
मां बाप नहीं इस के ये क्या लाज बचाएगी!
मर भी जाती मैं मां के आंचल को आंच ना आने देती!
मां बाप का सम्मान बड़ा था मेरे सम्मान से!
मैं बड़ी होती तो मां बाप को मरने ना देती!!
मेरा भी अपना था मां की चोटी को संवार दूँ!
कभी आगे से कभी पीछे से कंघी निकाल दूँ!
बैठ पास अपने मां के आंचल मैं सो जाऊं
हर बातों को मां के आगे खोल दूँ!!