हाँ , मैं लड़की हूँ
हाँ , मैं लड़की हूँ


सूने मोड़ पे किसी इंसान की आहट से डर जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
पराई, बेगानी, अमानत किसी और की कही जाती हूँ
हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
कहीं भी ज़माने में ख़ुद को मैं महफ़ूज नहीं पाती हूँ ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।
मैं तानों, नज़रों, एसिड, से हर रोज़ जलाई जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।
हो कोई उम्र मेरी, मैं कुचल कर नालों में फेंकी जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।
जिंदा बचूँ तो कटघरे में, सबूत बनाकर नंगी कर दी जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ ।
कभी गैरों से कभी अपनों से, मैं यूँ ही दबती जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ,
मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
चुप रहूँ तो अबला हूँ मैं, बोलूँ तो बेशर्म कही जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।
आधुनिकता के नाम पर, मैं बाजारों में बेची जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
चाहे कितनी क़ाबिल हूँ , मापी जिस्म के नूर से जाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
इस समाज में कभी 'दासी' , कभी 'बेब' बना दी जाती हूँ ,
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
रिश्ते समाज, इज़्ज़त, करियर, हर तोहमत से डराई जाती हूँ
हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।
सब सुनती सहती चुप कैसे , मैं खुद पे हैरान हुई जाती हूँ ,
हाँ मैं लड़की हूँ तो क्यों, खुद को इंसान नहीं गिन पाती हूँ।