बेरोजगारी की सीख
बेरोजगारी की सीख
रोज सुबह मन में लेकर उम्मीद, और आंखों में लेकर ख्वाब।
निकलता था करके ईश्वर को नमन कि, हे प्रभू आज तो
पसंद करवा देना मेरे दिए हुए जवाब।।
एक किताब बन गया था, इंटरव्यू के सवालों के जवाब रट-रटकर।
एक गाइड बन गया था, दरवाजों और दरबदर भटक-भटककर।।
कोरे कागज लगने लगे थे, सौ-सौ नंबर वाले डिग्री और मार्कशीट के पन्ने।
उन डिग्रियों के साथ देखे थे जो हजारों, अब टूटने लगे थे वो एक-एक सपने।।
घरवालों ने विश्वास बढ़ाया, न हारने दी हिम्मत।
घरवाले हमेशा साथ थे, जब साथ नहीं दे रही थी किस्मत।।
माना कि बहुत खाई ठोकरें पर, बेरोजगारी ने बहुत कुछ सिखाया।
दोस्त-दुश्मन, अपनों और दुनिया का, सही रूप दिखाया।।
इक दिन, कोशिश और किस्मत ने की साझेदारी।
छोटी सी नौकरी लग गई तब, और दूर हुई बेर
ोजगारी।।
बेरोजगारी फिर याद आई, पहली कमाई जब आई हाथ।
एक-एक पाई की कीमत याद आई, जब पगार की गड्डी देखी एक साथ।।
फिर समझ आया, मायने नहीं रखता आपका रोजगार छोटा हो या बड़ा।
मायने रखता है सिर्फ, अपने पैरों पर होना खड़ा।।
लाखों देशवासी ऐसे हैं, भूख जिनकी तरसती हैं, छत जिनकी टपकती है,
जो अभी भी है बेरोजगार।
उन सब भाई-बहनों और परिवारों से हैं, मुझे सहानुभूति और सरोकार।।
खुशनसीब हूं मैं, भटक-भटककर वापस आने के लिए मेरे पास था एक घोंसला।
मेरे अपनों का साथ, और उनके होने का एहसास देता था मुझे हौसला।।
मेरी बेरोजगारी की सीख कहती है, हिम्मत और हौसला रखने से
हो जाती हैं मुश्किलें आसान।
अपने हौसले बनाए रखना, आज नहीं तो कल पंखों को
मिल ही जाता है मौका, भरने को उड़ान।।