प्रकृति
प्रकृति
देख धरा का नव श्रृंगार,
प्रकृति भी मुस्करा उठी,
देख मनुष्य का आवाहन,
प्रकृति भी खिलखिला उठी ।
नदिया की धारा भी अब,
निर्मल बहती कल कल कल कल,
दूर हुआ उसका मैलापन,
नहीं बचा अब कोई प्रदूषण ।
उन्मुक्त गगन स्वच्छंद पवन ।
पर्वत भी निर्बाध से,
कर रहे हैं अभिवादन,
जंगल भी आबाद हो,
कर रहे धरा अभिनंदन ।
चिड़िया भी चहचहा कर,
गुंजा रही घर का आंगन,
सागर की लहरें उमड़ घुमड़,
सुना रही संगीत मधुर ।
फूलों की है रंगत निखरी,
पक्षियों की भी सेहत सुधरी,
जानवर भी होकर निडर,
रहे हैं अपना गान,
चांद और सूरज झूम उठे हैं,
कर रहे मानव का गुणगान ।