इश्क
इश्क
मेरे इश्क की कोई ज़ात नहीं,
तुम इसे पैगामें इबादत समझो,
मेरे आसुओं की कोई आवाज़ नहीं,
तुम इन्हें बेअवाज़, बेहिसाब समझो,
के फिज़ा में, फूलों की खुशबू फैली है जितनी,
मेरी मुहब्बत को तुम उतना ही पाक समझो,
तेरे हर अहसास को, अपना बनाया है हमने,
तेरी खुशी के लिए, दर्द अपना छुपाया है समझो,
के रहूंगा बन के तेरा साया बनके, हरदम,
तुम इसे अपनी ज़रूरत, या चाहे मेरी मुबब्बत समझो।

