ग़ज़ल...15
ग़ज़ल...15
बेदर्द ज़ख़्म आज हुआ क्यूॅं हरा नहीं।
इस मौत से कहो कि अभी मैं डरा नहीं।
ग़ज़लें न हो सके न कभी गीत गा सके,
है कौन सी घड़ी कि मिरा दिल भरा नहीं।
ये वक्त रोकता न कभी टोकता मुझे,
हंसकर न जी सका न अभी तक मरा नहीं।
तेरा तिलिस्म टूट गया देख जिंदगी,
इस मौत का उसूल ही मुझपर ख़रा नहीं।
है आरजू अगर कि दिले बेहिसाब को,
आवाज़ दे नसीब मुझे मैं ज़रा नहीं।
हर सॉंस कह रही कि भुला दे अभी उसे,
मालूम हो तुझे कि वही अप्सरा नहीं।
'गुलशन' उजड़ गया कि गुलों से न बू मिला,
वो फूल डाल से ही अभी क्यूॅं झरा नहीं।

