बेहतर बनूं !
बेहतर बनूं !
विस्तृत है आसमां,
ढूंढू कहां मैं पतंगा,
बेहतर बनूं दीपक,
विलीन हो पतंगा।
सुदूर हैं सूरज,
ढूंढू कहां मैं लाली,
बेहतर बनूं शाम,
ओढ़ लूं सफ़क !
अनंत ठहरा सागर
भरूं क्या मैं गागर
बेहतर बनूं गंगा
अर्णव मिलन हो चंगा।
खनिज खान धरा
ढूंढू कहां मैं काश्मरी
बेहतर बनूं रौशनी,
चमक उठे काश्मरी।
तपक दे धूप
भला क्यों मैं तपा,
बेहतर बनूं चांदनी,
ठंडक दूं,
जो धूप में है तपा।