तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में सियासी तकरार भरे हैं,
कहीं कोई मिल जाए मसाला,
नमक मिर्च तैयार पड़े है !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में इश्तेहार पड़े है,
कहीं कुछ हो तो घटित,
छापने को पत्रकार खड़े हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में कई मानसिक बीमार पड़े हैं,
कहीं कोई हासिल हो मकाम,
हकदारों के पारावार खड़े हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में चोरी-चकारी भरमार पड़े हैं,
कहीं कोई मिल जाए सेलिब्रिटी,
उनकी पराइवेसी में दखल को लड़े है !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में CAA-NRC पे मतभेद पड़े हैं,
कहीं कोई हो जाए झड़प,
मीडिया राई का पहाड़ करे हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
यहाँ रेप की सुनवाई को
तारीख पे तारीख धरे हैं,
कहीं मिल जाए जमानत,
फिर से बलत्कार करे हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नों में इंसानियत तार-तार पड़े है,
कहीं कोई मिल जाए पीड़ित,
साक्षात्कार को कई कतार खड़े हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
यहां राम और रहीम पे लड़े हैं
कहीं कोई भगवा, कोई हरा
एक-दूसरे पे तलवार लिए खड़े हैं !
तू खबर होगा क्या मेरे अखबार की,
पन्नो में घरेलू क्लेश जंजाल भरे हैं,
जज के फैसले से पहले,
फैसला ये अखबार करें है !
अखबार जन आवाज है,
वही जनता पे सवालात करें है,
अखबार आवाज है प्रताड़ित को,
वही उनके दुख पे नमक धरे है।
अखबार आवाज है जनतंत्र की,
वही सिस्टम के तलवे पड़े हैं,
अखबार आगाज़ है नये सवेरे का,
पर अरसों से वो शाम धरे है,
इसलिए कबाड़ में पड़े हैं !