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Amar Mandal

Inspirational

5.0  

Amar Mandal

Inspirational

चारदीवारी

चारदीवारी

1 min
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ये चारदीवारी कहती है,

मुझे कोसती ही रहती है,

रहोगी घिरी मुझसे

कब तक ऐसे,

बेड़ियाँ पड़ी हो

पैरों में जैसे,


उन्मुक्त पवन बहती है

पार इस दीवार के,

भेद इस प्राचीर को

हौसले के हथियार से,


धूप भी अलग होगी

पार इस संसार के,

अलग ही संसार होगा

परे इस संसार से,

ये चारदीवारी कहती है

मुझे कोसती ही रहती है।


राह होगी आसान

न, मैं ये न कहता,

पर मुश्किलें न हो,

ऐसा जीवन भी तो

जीवन न रहता,


टूटे हौसले गर भी

ढाल बना संयम को,

संयम की ढाल पे

चल रचने मिसाल तू।


रोकेगा पग-पग तुम्हें

समाज अपने मायाजाल से,

संयम की ढाल पे

चल बनने विशाल तू,


लड़ एक बार ही सही,

खर्च कर बचे-खुचे दीनार

खाली पड़े हिम्मत के सुराह से,

यही जमा पूंजी रहेगी साथ

पार इस दीवार के,

ये चारदीवारी कहती है

मुझे कोसती ही रहती है।


यूँ घूटन न होती

छाए इस अंधकार से,

रोशनी रोक खड़ा हूँ

एक शिथिल दीवार सी,

लड़ एक बार ही सही

अपने अधिकार के अधिकार से,


वो हार भी बेहतर होगी

इस बिन संघर्ष हार से,

अचल हूँ मैं,

अचल तो तू भी पड़ा,

खुद की राह

खुद ही रोके खड़ा,

अनंत पारावार है

पार इस दीवार के,


कर पार इस दीवार को

बेड़ियाँ तार तार कर,

ये चारदीवारी कहती है

मुझे कोसती ही रहती है।


अभेद्य, हूँ नहीं मैं,

जर्जर पड़ा हूँ

असंख्य वार से,

छलनी कर एक एक ईंट

अपने प्रहार से,

होगी कोई और दीवार

पार इस दीवार के,


उसे भी छलनी करना

हौसले के हथियार से,

ये बेबसी बेकार है,

ये झिझक भी तो हार है,

लड़, गिर, उठ, फिर लड़,

संघर्ष ही तो जीवन का सार है।


ये चारदवारी कहती है,

मुझे कोसती ही रहती है।


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