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Vinita Rahurikar

Abstract

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Vinita Rahurikar

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प्रेम

प्रेम

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प्रेम आया था

धवल चाँदनी में लिपटे

रात-रानी की सुगंध में सराबोर


अनगिनत रँगों के फूल लिए

लेकिन न तुम इमरोज थे

न हो सकी मैं ही अमृता


और उदास हो ठिठक गया

देहरी पर ही प्रेम

अपने हरेपन में भी


मुरझाया हुआ

यादों के सूखे फूल मुठ्ठी में भरे।


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