STORYMIRROR
चल रही हूँ मैं
चल रही हूँ मैं
चल रही हूँ मैं
चल रही हूँ मैं
चल रही हूँ मैं
बड़े सधे कदमों से
एक लय में
थकी हूँ फिर भी
रोक नहीं सकती
कदम अपने
न सुस्ता सकती हूँ
किसी पेड़ की
ठंडी छाँव में
क्षण भर भी
रिश्तों की जो पोटली
रखी हुई है सर पर
उसे यूँ ही सतत
चलते हुए ही
निभाते रहना है
More hindi poem from Vinita Rahurikar
Download StoryMirror App