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मुहब्बत बंजारन

मुहब्बत बंजारन

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उम्र के तपते

बीहड़ रेगिस्तान में

मेरे मन की

मुहब्बत बंजारन

ख्वाहिशों की 

छोटी सी पोटली लिए

ढूँढती है 

इश्क के पेड़ की

जरा सी छाँव

दम भर साँस लेने को।


चाहती है बस

चुटकी भर नमक

किसी की आँखों से

छलकते प्यार का

की रूह को खिला सके

दो कौर सुकून के।


मुट्ठी भर चाँद 

अपने हिस्से का

जिसके उजाले में

बुन सके सपनों की डोरियाँ

मन को बाँधे रखने के लिए।


थोड़ी सी जमीन

ख्वाहिशों की पोटली पर

सर रखकर सुस्ताने के लिए

मुहब्बत बंजारन की पोटली में

बस इतनी सी ही तो

ख्वाहिशें हैं।


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