धर्म की डोर
धर्म की डोर
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कौन जाने आ कर के मृत्यु लोक में
हरी भज बिन कुछ नहीं मृत्यु लोक में,
अवसर हुआ आने का लगा मेला रंगीन
गर्भ लोक में बना काया का टीला रंगीन,
जन्म दिया जननी ने तो कुन्बा रचा रंगीन
इंगला पिंगला ने काया को रुप दिया रंगीन,
तब तक रहा मन शांत मृत्यु लोक में तेरा
माया की ममता में लालच नहीं था तेरा,
कामदेव के चक्कर में मन नहीं था तेरा
खप्पर भरनी तृष्णा ने ढंग बिगाड़ा तेरा,
कर्म थे करने जो तू गया भूल बावले
इब पछतावे के होवे तू गया लुट बावले,
लाख चौरासी जिया जुन योनी के फंद
तुझे फेर जकड़ लेंगे मृत्युलोक में बाबले।
