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Vikram Jangra

Abstract

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Vikram Jangra

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नमस्कार

नमस्कार

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नमस्कार करों तुम नमस्कार करों तुम

मात-पिता को नमस्कार करों

नमस्कार करों तुम नमस्कार करों


पीने को जल दिया, फिरने को ज़हान जिसने

रहने को स्तंभ-दुर्ग दिए, छतर ढ़हाल जिसने

नमस्कार करों तुम नमस्कार करों तुम

मात-पिता को नमस्कार करों


खाने को अन्न दिया, बौनें को किसान जिसने

बर्षा को वायु-मेध दिए, ग्लैशियर जाल जिसने

नमस्कार करों तुम नमस्कार करों तुम

मात-पिता को नमस्कार करों


रक्षा को रक्षक दिया,रखीं मातृ शान जिसने

शीत को हिम-ताल दिए, रखा ठंड की ढाल जिसनें

नमस्कार करों तुम नमस्कार करों तुम

मात-पिता को नमस्कार करो।


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