स्पर्श
स्पर्श
हो गई सांझ,
घिर आये बादर,
सूरज डूबा क्षितिज के पार।
लौट रहे अपने घर पंछी,
छा चुका है अंधकार।
तब प्रचण्ड से
मेघ लगे गरजने,
हुए कई तड़ित आघात
पानी लगा बरसने।
तब फिर सिहर उठी वह,
कांप रहा मृदुल मन।
तब फिर ठिठकी आँखें मेरी,
देख स्निग्ध कोमल तन।
सकुचा रहा है बार-बार,
प्रत्येक जल बिन्दु संग।

