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Bhavesh Lokhande

Abstract

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Bhavesh Lokhande

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मोतियाबिंद

मोतियाबिंद

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हम ने खरीदी दुनिया हमारी उनसे

जिन्होंने खून पसीने से सींचा था यह शहर

जिनके लहु से लिखा था इस जगह का नाम

जिनकी पुरखे यहां की मिट्टी में हुए दफ़न

कइयों के तो नाम तक हमे नहीं पता

हमने लगाए घरों की बाल्कनी में दिये

उनकी झुग्गियों की टिमटिमाती रौशनी को कोसते कोसते

उनके हक़ की रोटी पानी और रौशनी चुराकर

हमने आबाद किये हमारे आशियाने 

किराये की हमदर्दी दिखाते दिखाते

हमने भरी ठंडी आह

और भुला दी,कितनी हत्याएं

कितने मासूमों का यतीम होना

कितने घरों का उजड़ जाना

हमने अपना ली है उनकी व्याख्याएं

जिनके शीशमहल फ़ौलादी कपाउंडो में बंद हैं

हमारी नज़रें अब

गरीबों गरीब वैधता के घरों की वैधता ढूंढती है

अब हमें भी है दुनिया देखने की आदत इस कदर

जिससे रहे हमारे मिडलक्लास अहसास बरकरार

अब हमें नहीं दिखती असमानता,विषमता

जैसे किसी ने जड़ दिया हो हमारे आँखों मे

मोतियाबिंद!



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