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Bhavesh Lokhande

Abstract

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Bhavesh Lokhande

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तू एेसे चला गया...

तू एेसे चला गया...

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तू ऐसे चला गया कि कोई मिरे दिल से खूँ ले गया

धडकने ज़िंदा रहने का सबब माँगे और तू जाँ ले गया


आ बस जा इसी शहर इसी ठिकाने में मुसाफिर 

चलने का शौक मुझे कहाँ किस ओर किस जगह ले गया 


तू बोल कि मै तुझे सुनने को आमदा हूँ इस वस्ल कि रात

तू चला जाएगा सुबह घर अपने कि जैसे खुदा चाँद ले गया


इसे कहो दश्त़ या विराना या फिराक या हिज्र या जुदाई 

मै तड़पता भी हूँ अब जैसे कोई साँस ले गया जाँ ले गया


साया था जो मिरा साथ हो लिया जब उसने साथ छोड़ा है

मेरा कुंचा था यह बंदसा जैसे जाते जाते चाबी वह ले गया


हमने कहाँ निभायी थी वफाए,जो कुछ उम्मीद उससे रखते

मेरा आईना वह था, मेरा चेहरा वह था,मेरा किरदार ले गया


दर्द दे मुझे, दर्द की ताबीर दे दे, ख्वाब जैसी जिंदगानी दे दे

मै जी भी लूंगा ए दोस्त, मुझे दे वो कहानी जो बचपन ले गया 


हक नही रिश्ता नही कम से कम पहचान हो उनसे यूं ही 

मकी जन्नत के नही सही पर खुदा़ मुजे़ दोजख़ भी न ले गया 


आहिस्ता रखिए पाँव आपके जमीं पर ,कही मैले हो जाएंगे 

मट्टी मे जना हूँ मै मैने उसे मुहब्बत माँगी वह मुझ से बहार ले गया


ये सूरज मुझसे दुश्मनी कर बैठता है हर दिन हर रोज

क्या मेरी उम्र हैं दलीलों की, जब थी तब वह जबाँ ले गया


जा जिसे कह के वह खड़ा उधर चौराहे पर तनहा 'मुन्तजिर'

जिंदाँ लगता है दूरसे पर बुत है वह, जैसे जज्बात ले गया।


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