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Bhavesh Lokhande

Abstract

4.5  

Bhavesh Lokhande

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अंधेरे के कोख से तो जने हो

अंधेरे के कोख से तो जने हो

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अंधेरे के कोख से तो जने हो थोड़ी ही ना तुम जने हो

जन्नत कि सेज से रूतबे तुम्हारे किसी काम के नहीं। 


ना तुम्हारी बेपरवाही किसी काम आयेगी

आज जो बरसा रहें हो यह लाठीयाँ,

औरचला रहे हो गोला बारूद और बंदुके

इनके पीछे के हाथों को सिर नहीं होते।


इनका सिरफ़ एक ही वजूद होता है

जो रोटी फेंकेगा उसके लिए काम करना

तुम्हारे लिए जो काम कर रहे हैं आजकल

दूसरे किसी के लिए कर रहे होंगे।


इन खोखले इन्सानों पर जंग के दाँव लगाना बंद करो

यह अपनी घर कि औरतों को बेवा कर देंगे

यह अपने बच्चों को यतीम कर देंगे

अपनी माँ की कोख उजाड़ देंगे


यह सोचते नहींबंदुकें की नोंके जो आज उस तरफ है

कभी वह इस तरफ भी हो सकती हैं बदले कि आग की

चिंगारियां बड़ी बहादुर लगती हैं तुम्हे बता दूँ,

यह सब कुछ जला देती है सब दूर पहुंचती है


इनकी ना कोई दिशा होती हैं ना कोई सिरा

मैंने अक्सर आग लगाने वालों का भी घर जलते देखा है 

आज मजे में हँसने वाले को कल मलाल में रोते देखा है।


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