STORYMIRROR

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

4  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

जीवन मर्म

जीवन मर्म

1 min
102

तजें सब शर्म, करें शुभ कर्म,

त्याग कर क्रोध, करें निज बोध,

सुपथ पर करते हुए गमन ,

निभाएं सदा ही हम सब अपना धर्म।


श्रेष्ठ दिनचर्या नियमित रख,

करें नित योग,रहें नीरोग,

सदा करें निर्बल का सहयोग,

स्वभाव निज रखें शीतल नर्म।


सदा रहें खुश, रखें दूर दुख,

बांट गम सबके सदा सतत्,

लुटाएं खुशियां हम बेशर्त,

कोटि बाधा कर लें पार, लड़ें

जब देखें कहीं अधर्म।


असीमित खुशियां मिलें तुम्हें,

मिलेगा कभी न कोई ग़म,

छोड़िए 'मैं' का झूठा अहम्,

सुखी जीवन का यही है मर्म।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract