यादों के जंगल में अब............
यादों के जंगल में अब............
यादों के जंगल में अब,
वापस जा कर क्या करे,
चंदन को विषधरों ने घेरा,
बाकी पेड़ बबूल हुए।
चंपा से महकते रिश्ते,
खुशबू अपनी भूल गए,
काँटों से भरे पेड़ के,
गुलाब भी बेबस हो गए।
नफरत की हवा ऐसी चली,
रजनीगंधा के फूल झड़े।
गीत सुनाने वाले भँवरे,
गाना, गाना ही भूल गए।
स्नेह रस से भीगा कदंब,
अब तो जैसे रसहीन हुआ,
प्यार के सारे बंधन टूटे,
महुआ भी अब नीम हुआ।
सोने से संबंधों वाले,
पेड़ भी अब मुरझाए हैं,
बसंत रूठ गया जंगल से,
बस पतझड़ के साए हैं।
पहली शुरुआत कौन करे,
ये, मसला बड़ा हो गया,
स्नेहसिक्त वचनों का कद,
अहम् से छोटा हो गया।
ऐसे यादों के जंगल में अब,
वापस जा कर क्या करें,
जहाँ, चंदन को विषधरों ने घेरा,
और, बाकी पेड़ बबूल हुए।