मेरी बिटिया
मेरी बिटिया
मेरी वह छोटी सी गुड़िया,
मेरे घर की रौनक थी।
अपनी प्यारी बातों से वह,
सबका मन हर लेती थी।
हाथ पकड़ जब उसने मेरा,
उठकर चलना सीखा था।
मेरे जीवन का शायद वह,
सबसे बड़ा सबेरा था।
चलती थी जब ठुमक- ठुमक,
नन्हे- नन्हे पाँवों से।
स्वर्ग उतर आता धरती पर,
उसकी, पायल की झंकारों से।
बड़ी हुई, हुई समझदार,
दुनिया उसकी अपनी हुई।
फिर भी उसकी कोई बात,
बिन पापा पूरी न हुई।
उसकी नज़रों में उसके पापा,
एक हीरो से कम नहीं।
उसके पापा से अच्छे पापा,
दुनिया में कोई थे ही नहीं।
फिर आया मेरे जीवन का,
सबसे कठिन एक काम।
मेरी बिटिया का जब मुझको,
करना पड़ा कन्यादान।
दूजे हाथों में सौंपना उसको,
मेरी आँखें भिगो गया।
मेरी हिम्मत को न जाने,
उस दिन क्या- क्या हुआ।
पर जब बेटी के आँखों में,
सुनहरे सपने बुनते दिखे।
मैंने भी फिर बहते आँसू,
आँखों-आँखों में रोक लिए।
ब्याह हुआ, रस्में हुईं,
विदा की घड़ी आई।
कुछ ही पलों में मेरी बेटी,
हो गई फिर पराई।
कुछ ही दिन बीते तब,
मन में कुछ आशंका हुई।
बेटी सुखी है या नहीं,
बात मेरे मन में आई।
मन ही मन निश्चय किया,
बात मैंने एक ठानी।
बिन बताए फिर एक दिन,
बिटिया के घर की रवानगी।
जैसे उसने मुझे अचानक,
देखा अपने घर में।
बचपन की तरह पापा करते,
लटक गई मेरे गले से।
वहाँ पहुँच कर जब मैंने,
खुश- खुश उसको देखा
मन मेरा एक बार फिर।
पुलकित सा हो गया,
हाँ,हाँ पर अब वह नन्ही गुड़िया।
समझदार बहुत हुई,
घर की ज़िम्मेदारी को।
अपनी माँ जैसी थी निभा रही,
एक दिन घर उसके रुककर,
जब मैंने वापसी की तैयारी।
दुनिया भर की सारी चीज़ें,
साथ मेरे उसने रख दीं।
केवल सामान ही साथ नहीं था,
साथ थीं बहुत सी नसीहतें।
ये करना, ये न करना,
और बहुत सी बातें।
हाथ पकड़कर जिसकोे मैंने,
चलना था सिखाया।
कंधे पर बैठा कर जिसको,
बगीचे में था घुमाया।
आज वही मेरी बेटी,
मेरी माँ सी हो गई।
बूढ़े बाप की चिंता में,
जैसे पागल सी हो गई।
पापा मेरी चिंता न करना,
यहाँ पर सब ठीक है।
आपकी प्यारी बेटी यहाँ,
सुखी और समृद्ध है।
तृप्त सा मेरा मन जब,
चलने को तैयार हुआ।
मेरी बेटी के एक वाक्य ने,
मुझको सब कुछ दे दिया।
मुड़कर अपने पति से बोली,
बाकी तो सब ठीक है।
पर मेरे पापा सा और,
दुनिया में दूजा कोई नहीं है।
मेरी वह छोटी सी गुड़िया,
अब भी वैसी ही छोटी थी।
बचपन में जो मेरे लिए,
दुनिया से लड़ लेती थी।