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Vineeta Pathak

Inspirational

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Vineeta Pathak

Inspirational

पार्थ, अब गाँडीव उठा.........

पार्थ, अब गाँडीव उठा.........

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महाभारत जैसा समर,

सामने है खडा़ हुआ।

कैसा विकट समय आया,

हम सबने है यह देखा।


न जाने कितने अभिमन्यु,

चक्रव्यूह में फँसे हुए।

अनजाने से इस युद्ध में,

रात-दिन हैं लड़ रहे।


कई अर्जुन उलझे हुए हैं,

'अपनों' के ही बीच में।

किस-किस से लड़ें कैसे,

जब चारों ओर हों अपने।


अपनों का लगा मुखौटा,

दुश्मन है ललकार रहा।

रणभेरी का बिगुल बजा,

लड़ने को है तैयार खड़ा।


रणछोड़ मत बनना तू,

रण-विजयी ही होना है।

देशहित मानवहित में ही,

अब आगे ही बढ़ना है।


भीष्मपितामह जैसे ज्ञानी,

जैसे अब भी वचनबद्ध हैं।

साफ़ सब कुछ दिख रहा,

फिर भी जैसे बेबस से हैं।


कौन कौरव कौन पाँडव,

सामने सब आने लगा।

काश कहीं से आएँ माधव

कहें, पार्थ गाँडीव उठा।


इस युग की महाभारत,

अब सामने हमारे है।

हम में से हर एक पार्थ है,

सामर्थ्य हम में भारी है।


हम ही केशव, हम ही पार्थ,

अब मानवहित में लड़ेंगे।

बिन अस्त्र-शस्त्र उठाए, 

विजयी होकर दिखलाएँगे।


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