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Sajida Akram

Abstract

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Sajida Akram

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"बूंदों की बतिया"

"बूंदों की बतिया"

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सावन की आमद ऐसी है,

जैसे मन के तपते सेहरा को ,

किसी ने भीगी बयार नज़र की हो।

कड़ी धूप पर बूंदों ने पर्दा गिरा दिया हो,

तपिश भरे माथे पर गिली हथेली रख दी हो।

'एक भीगी- सी दस्तक है,

सावन की मन पर कितनी ,

लुभावनी है इस शब्द की ध्वनि।

सावन कहने भर से लगता है,

जैसे मौसम ने शहनाई बजाई हो।

शहनाई की ही तरह में मंगल घोषणा है।

बारिक बूंदों के हवा में लहराते

रेले-रेेेेल धुआं-धुआं होती

फ़िज़ा के नाम से पुकारते हैं।

जब बादल केवल छेड़ने के

मन से बरस रहे हो तो,

उसे हल्की फुहार कहते हैं।

मेघों की गर्जन को ख़ुशहाली का शंखनाद और ,

झड़ी को मौसम की ज़ुबान कहते हैं|

बारिश से सारी भावनाएं जुड़ जाती हैं।

मन मयूर सा नाच उठता है।

किसी रात को ,जब बादल थोड़े सुस्ता रहें हों, 

बरखा जमी हो उस समय अचानक छत के किसी छोर से

अपनी अकेले की आवाज़ में किसी बूंद को सुना है आपने टिप्प ...टिप्प...!"

बूंदों की टिप्प-टिप्प पर अक्सर मेरे पति झूम-झूम जाते हैं।

कभी-कभी गहरी नींद में भी 

मुझे आवाज़ देकर उठा देते हैं।

सावन की रातें अक्सर

ऐसी बूंदों से झनझनाती हैं।

जैसे मधुर शहनाई बज रही हो|


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