माँ है या कोई जादूगर
माँ है या कोई जादूगर


माँ है कि या कोई जादूगर ये समझना है बेहद मुश्किल !
नन्हा सा अंकुर जब कोख,
में लेता है पहली अँगड़ाई,
तभी अपनी माँ से जुड़ जाती है,
उसकी भावनात्मक नाते की डोर।
माँ ही उसे सिखाती पहले रिश्ते का मोल,
पूरी दुनिया में यही रिश्ता सबसे अनमोल,
अपने अजन्मे शिशु की भी सारी बातें व
सभी ज़रूरतें न जाने कैसे समझ जाती।
माँ है कि या कोई जादूगर ये समझना है बेहद मुश्किल !
प्रचंड प्रसव वेदना हँसते हँसते सह जाती,
बच्चे की किलकारी पर बस खुश हो रो पड़ती,
उसकी भूख, प्यास, नींद जाने कैसे जान जाती।
बच्चे की पसंद नापसंद बिन बताये ही बतलाती,
जिन्दगी की चाक पर कच्ची मिट्टी सा आकार बनाती,
अपने बच्चे की पहली शिक्षिका बन अच्छे संस्कार भरती,
माँ है कि या कोई जादूगर ये समझना है बेहद मुश्किल !
बड़े होते बच्चे को सही ग़लत की पहचान कराती,
दीये की लौ बन सही राह और सही दिशा दिखाती,
अक्सर बच्चों के ज़माने के साथ क़दम मिलाती,
अब उनसे ही आधुनिकता का पाठ पढ़ती।
माँ है कि या कोई जादूगर ये समझना है बेहद मुश्किल !
अपनी उम्र की दोपहरी में बच्चे के दो मीठे बोलों को तरसती,
अपने लिये बच्चे के कुछ फ़ुरसत के पलों की भीख माँगती,
मन के घावों को अपनी फीकी मुस्कुराहट में छुपाती।
आँखों के कोरों पर ठहरी आँसुओं की बूँदों को,
‘आँख में तिनके’ चले जाने के बहानों में ढँकती,
माँ है कि या कोई जादूगर समझना है बेहद मुश्किल !
उम्र के अंतिम पड़ाव पर अपने अंत की दुआ माँगती,
अपने दुखों और तकलीफ़ों को सबसे छुपाती,
अपने ऊपर हो रहे ख़र्चों का हिसाब किताब करती,
अपनी जमा पूँजी अपने नाती पोतों पर लुटाती,
ख़ुद की परेशानियों और दुखों को अनदेखा कर,
सबके लिये दुआ और सिर्फ़ दुआ माँगती,
माँ ही है वो जादूगर ये समझना नहीं अब मुश्किल !