लक्ष्य
लक्ष्य


मेरे पास तो वक़्त ही वक़्त है तेरे लिए
ये ज़िन्दगी की दौड़ भी है सिर्फ तेरे लिए
हाँ ! यार, मुझे एक प्यास थी एक प्यास है
तेरे जीत की आस, सदा ही मुझको रहेगी।
रंज छिपा उर में राही, चल मंजिल की ओर
दौर-ऐ मुश्किलों पे अड़िग बढ़ लक्ष्य की ओर
हर मोड़ पर हर हाल में
ठोकरों से गिरो तो खुद से सम्हलो।
हर क्षण रखो ध्यान लक्ष्य की ओर
जो मिले बेरुखी अपनों से
न होना विचलित रंच मात्र भी तुम
बनाकर हर रंज को अस्त्र अपना
ज़िन्दगी की राहों में चलो निरंतर, निर्भीक तुम।
हर पग हर लम्हा मेरा साथ मिलेगा पर
न होने दे तू पस्त खुद के हौसलों को भी
लक्ष्य को पा लेने की प्यास तू भी तो रख
ज्यों खड़ा हूँ मैं अड़िग, बनकर विश्वास तेरा।
हर तूफान से टकराने का हौसला तू भी तो रख
नहीं दूर मंजिल तेरी, पास है साहिल तेरा
न घबरा आन पड़ी असफलताओं से
बनाकर असफलता को अस्त्र अपना
ऐ लक्ष्य के राही बढ़ते चलो निरंतर, निर्भीक तुम।
न चलकर आएगा कोई मुकाम दर पे तेरे
तुझको ही हर मुकाम नापना होगा
कभी लक्ष्य न ओझल होने दे
रख मन में अटल विश्वास
हो कितना भी तिमिर पथ पर तेरे, मत घबराना।
त्याग सुख चैन सब तू, लक्ष्य रख
कर्म को दे सम्पूर्ण आकर
कर परिपूर्ण लक्ष्य पे वार
वक़्त को भी दे-दे तू, हौसलों से मात।
पहुँच कर मंजिल तुझे होगा, खुशनुमा अहसास
मिलेगा जहाँ भर का सुकूँ, बुझ जाएगी तेरी प्यास
बनाकर कर्म को अस्त्र अपना
ऐ लक्ष्य के राही बढ़ते चलो निरंतर, निर्भीक तुम।