STORYMIRROR

Sampoorna Raj

Abstract

5.0  

Sampoorna Raj

Abstract

प्रकृतिक की सभा

प्रकृतिक की सभा

2 mins
292


प्रकृति ने एक सभा बुलाई।

अपने साथियों को एक साथ लाई।।


मिट्टी बेचारी पहले आई।

आकर अपनी हाल बताई।।


मिट्टी बोली हे प्रकृति रानी।

अब ना चुप रहूंगी।।

अब ना स‌ह सकूंगी।

इन पागल मानव की मनमानी।।


इन्होंने मेरी कोख सूनी की।

मेरे दिल को बुलडोजरों से क्षत विक्षत किया।।

ऐसा करके इसने मेरे साथ विश्वासघात किया।

इसलिए अब ना चुप रहूंगी ।

अब ना सह सकूंगी।।


अब भूकंप,भूस्खलन से होगा मानव पर प्रहार होगा।

अब फिर से होगा मानव का विनाश ।।


जल्द ही आ गई जल रानी।

बोली हे प्रकृति रानी।।

अब ना चुप रहूंगी।

अब ना सह सकूंगी। ।

इन पागल मानव की मनमानी।


हमने जिनकी प्यास बुझाई ।

हमने जिससे से प्यार जताई।।


मानव ने मेरी पथ रोकी।

विकास के नाम पर ऊंचे ऊंचे डैम बनाई।।

यह तो मुझको समझ में आई।


पर जब आस्था के नाम पर कूड़ा-करकट से।

नहर नालों से , और मल मूत्र से ।।

मेरा जो तिरस्कार किया।

मेरा जो अपमान किया।।


इसलिए अब ना चुप रहूंगी।

अब ना सह सकूंगी।।

इन पागल मानव की मनमानी।


अब बाढ़ ,बारिश ,हिमपात और सुनामी से।

मानव पर बड़ा प्रहार होगा।।

मानव का फिर से विनाश होगा।


तुरंत ही, जैसे तैसे आए हवा राजा।

बोले हे प्रकृति रानी।

मेरा तो खुद ही दम घुट रहा है।

ज़हरीली और विषैले गैसों से , मैं हूं परेशान।।


फिर से बोले हवा राजा।

हे प्रकृति रानी। ।


अब ना चुप रहूंगा ।

अब ना सह सकूंगा।।

इन पागल मानव की मनमानी।


मानव ने विकास के नाम पर।

चिमनी, फैक्ट्रियों और गाड़ियों की जहरीली गैसों से ।।

मेरा जीना हराम किया।


अब ना सुनूंगा क्षमा याचना।

अब सीधे होगा मानव पर प्रहार।।

आंधी और तूफान के आतंक से।

फिर से होगा मानव पर प्रहार।।

फिर से होगा मानव का विनाश।।


यह सब दलीलें सुनकर प्राकृति बोली ।

मैंने भी इनको खूब चेताया।।

फिर भी मानव अपनी हरकतों से बाज़ ना आया।

फिर प्राकृतिक ने दी सबको खुली छूट।।


अब तो संभल जाओ मानव।

प्रकृति मां के लिए एक कदम बढ़ाओ मानव।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract